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________________ हैं चित्त की चंचलता । भगवान के बिना चित्त की चंचलता नहीं मिटती। भगवान निर्भय बनानेवाले हैं । इसीलिए ही वे अभयदाता कहे गये हैं । * संसार से निर्वेद भी भगवान के बहुमान से ही पैदा होता हैं । भगवान और भगवान के गुणों का पक्षपात होते ही संसार तरफ की नफरत हो ही जाती हैं । जन्म-मरणरूप संसार मुख्य नहीं हैं, विषय-कषाय ही मुख्य संसार हैं । उसकी तरफ नफरत जगनी यही भव-निर्वेद हैं । ज्ञानादि गुणों के प्रति प्रेम जागृत होना ही भगवान पर का बहुमान हैं । ___ यह शरीर अपाययुक्त हैं । संपत्ति, विपत्ति का स्थान हैं । संयोग नश्वर हैं । सब कुछ विनश्वर हैं । ऐसी विचारणा द्वारा आखिर विषय-कषायों के उपर नफरत पैदा करनी हैं । यह शरीर तो मकान हैं । मकान की मरम्मत करो वहाँ तक फिर भी कुछ एतराज नहीं, पर मकान की मरम्मतमें उसके मालिक (आत्मा) को बिलकुल भूल जाओ वह कैसे चलेगा ? * इहलोक, परलोक, चोरी, अकस्मात्, आजीविका, मृत्यु, अपयश ये सात मुख्य भय हैं । ___ आज तो मनुष्य ऐसे अनेक भयों से घिरा हुआ हैं । सरकार, गुंडे, चोर, ग्राहक, भागीदार इत्यादि का कितना भय हैं । दुर्घटना का भय भी आज कम नहीं हैं । वाहनों की दुर्घटना कितनी होती हैं ! पूरा भावनगर अभी भूकंप के भय से कैसे काँप रहा था ? ये सात तो मुख्य भय हैं । बाकी इसके ७०० प्रकार भी हो सकते हैं । गणि मुक्तिचन्द्र विजयजी : मुख्य भय कौन सा ? पूज्यश्री : आपको जो सताये वह आपके लिए बड़ा भय । सबकी अलग - अलग प्रकार की परिस्थिति होती हैं, उस तरह उसे भय सताया करते हैं । ____ 'भय चंचलता हो जे परिणामनी' चित्तकी चंचलता चौबीसों घण्टे रहती हो तो समझें : मन चौबीसों घण्टे भय-ग्रस्त हैं । [कहे कलापूर्णसूरि - ४00woooooooooooooom १७१)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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