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स्वस्थता प्राप्त करनी हो तो भगवान के अलावा दूसरा कोई भी उपाय नहीं हैं । प्राप्त करनी हैं ?
अब पाँच सूत्र बहुत ही गंभीर हैं । यहाँ स्पष्ट लिखा हैं : अभय आदि पाँच भगवान के बिना कहीं से नहीं ही मिलते । भगवान पर बहुमान आने पर भगवान आपके हृदयमें आ ही गये । जहाँ बहुमान हैं, वहाँ भगवान हैं । अतः एव भक्त को कभी भगवान का विरह पड़ता ही नहीं हैं । यही बात गुरुमें भी लागू पड़ती हैं | सच्चे शिष्यको कभी गुरु का विरह पीडा नहीं ही देता । क्योंकि हृदयमें गुरु के उपर बहुमान हमेशा रहा हुआ ही हैं ।
अभय आते ही आत्मा का स्वास्थ्य आता हैं । स्वास्थ्य याने मोक्षधर्म की भूमिका की कारणरूप धृति ।
धृति का प्रचलित धैर्य अर्थ न करें, किंतु आत्मा के स्वरूप का अवधारण वह धृति ।
ऐसी धृति, ऐसा अभय भी जीवनमें न आया हो तो मोक्ष की आशा कैसे रख सकते हैं ? तलहटी पर भी नहीं पहुंचे हो तो दादा के दर्शन की आशा कैसे रख सकते हैं ?
अभय न हो तो विहित धर्म की सिद्धि कैसे हो सकती हैं ? समीपवर्ती भय के उपद्रवों से चित्त बार बार पराजित होता हो वहाँ धर्म कैसे जन्म लेगा ?
सम्यग्दर्शन की प्राप्ति आपके चित्त की स्वस्थता की अपेक्षा रखती हैं ।
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चार भावनाएं
मैत्री याने निर्वैर बुद्धि, समभाव । प्रमोद याने गुणवानों के गुण प्रति प्रशंसाभाव । करुणा याने दुःखीजनों के प्रति निर्दोष अनुकंपा । माध्यस्थ्य याने अपराधी के प्रति भी सहिष्णुता ।
९८८ कहे कलापूर्णसूरि - ४