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________________ वढवाण, वि.सं. २०४७ १७-१०-२०००, मंगलवार कार्तिक कृष्णा - ५ * राग-द्वेष को जीतनेवाले जिन कहे जाते हैं । जीतने के लिये प्रयत्न करनेवाला जैन कहा जाता हैं । समता के बिना राग-द्वेष जीत नहीं सकते । हमें सामायिक (सर्व विरति) मिली हैं । उससे राग-द्वेष बढ रहे हैं या घट रहे हैं ? याद रहें : दंड से घड़ा बनाया भी जा सकता हैं, और फोड़ा भी जा सकता हैं । इस जीवन से राग-द्वेष जीत भी सकते हैं, और बढा भी सकते हैं । 'मैं मोक्षमार्ग की तरफ चल रहा हूं' ऐसी प्रतीति न हो तो यह जीवन किस काम का ? मोक्षमार्ग की प्राप्ति भगवान के बहुमान के बिना नहीं होती । बोधि पहले की अभय आदि चार चीजें भगवान के बहुमान के बिना नहीं मिलती । ये पांचों (बोधि सहित) भगवान के बिना दूसरे कहीं से नहीं मिलेंगी । * करण याने निर्विकल्प समाधि । उसके लिए ध्यान चाहिए । उसके लिए चित्तकी निर्मलता चाहिए, स्थिरता चाहिए । हमारा मन नित्य चंचल हैं और मलिन हैं । सात भय हमारे पीछे पड़े हैं । इसी से मन चंचल हैं । भय का मतलब ही (१७० 6506666666666666666666666606 कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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