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________________ आधोई, वि.सं. २०३३ AT १५-१०-२०००, रविवार कार्तिक शुक्ला २ ध्यान विचार : ध्यान विचार पूर्वाचार्यों की संक्षिप्त नोट मात्र हैं, किंतु हमारे लिए अमूल्य पुंजी हैं । वि.सं. २०३० से मैं इस ग्रंथ का परिशीलन कर रहा हूं । साधना भी कर रहा हूं । इस परसे मैं कहता हूं : यह अद्भुत ग्रंथ हैं । * पू. पं. भद्रंकर वि.म. की संमतिपूर्वक ही इस ग्रंथ का निर्माण तथा उसमें शुद्धि-वृद्धि हुई हैं । उनकी संमति के बिना एक कदम भी मैं आगे नहीं बढा । हमारा पूरा जीवन परलक्षी हो जाने के कारण ऐसा अद्भुत ग्रंथ सामने होने पर भी उसकी उपेक्षा हो रही हैं, ऐसा मुझे हमेशा लगता हैं । रुचि प्रकट करने के लिए ही मेरा यह प्रयास हैं । कम्मपयडि, पंचसंग्रह, आगम इत्यादि के रहस्यों को खोलनेवाला यह ग्रंथ हैं । फिर भी हमारी उस तरफ नजर नहीं हैं, उसका मुझे तो बहुत ही आश्चर्य लगता हैं । श्रावकों को धन्यवाद हो कि उन्होंने करोड़ो रूपयों के व्ययसे यह मेला तैयार कर दिया । नहीं तो इतने साधु-साध्वीओं का यहां मिलन कैसे होता ? १६४ @@@@@@@@@@@@@@ कहे कलापूर्णसूरि ४
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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