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अनाहत की ध्वनि में भी कहां अक्षर होते हैं ? (३) परमाक्षर वलय : अँ, अहँ, अँ रिँ हँ तँ सिँ हूँ आँ रिँ उँ वँ ज्झाँ यँ साँ हूँ नमः ॥
ये २१ अक्षर हैं । नवकारका अर्क यहां हैं ।
इसमें बहुत से मंत्राक्षर हैं। देखिये योगशास्त्र का ८वाँ प्रकाश । उसमें बहुत से मंत्राक्षर मिलेंगे ।
(४) अक्षर वलय : 'अ' से लेकर 'ह' तक के बावन अक्षर । - (य् ल् व् ईषत् स्पृष्टतर लेने)
(५) निरक्षर वलय : ध्यान - परमध्यान को छोड़कर बाईस ध्यान - भेदों का चिंतन करना । क्योंकि ध्यान - परम ध्यान शुभाक्षरमें आ गये ।
(६) सकलीकरण : पाँच भूतात्मक । अरिहंत-जल, सिद्धतेज, आचार्य-पृथ्वी, उपाध्याय-वायु, साधु-आकाश तत्त्व हैं । (क्षिप-ओं-स्वा-हा)
(७) तीर्थंकर मातृवलय : २४ तीर्थंकर अपनी माताओं को परस्पर प्रेमपूर्वक देखने में मग्न हो वैसे देखना ।
___ आज भी ऐसे पट्ट राणकपुर, मोटा पोसीना, शंखेश्वर इत्यादि स्थलोंमें देखने मिलेंगे । यह ध्यान बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं । माता का वात्सल्य, भगवान का माता के प्रति भक्तिभाव - ये दोनों इसमें से समझने जैसे हैं । वात्सल्य और पूज्यभाव हमारे जीवनमें पैदा होने चाहिए, जिससे जगत के साथ योग्य संबंध बना रहे । मात्र ध्यानमें गये तो जीवन शुष्क हो जायेगा । ध्यानमें जगत के जीवों के साथ संबंध तोड़ना नहीं हैं।
* भगवान को जगत के जीवों को तारने की जितनी भावना थी उतनी भावना हमें अपनी आत्मा के लिए भी नहीं हैं । हमें हमारी चिंता हैं, उससे भगवान को ज्यादा हैं, ऐसा विचार कभी आता हैं ? जुआ खेलने की आदत पर चढे हुए पुत्रको देखकर पिताको दुःख होता हैं उससे कई गुना दुःख भगवानको हैं, ऐसा कभी विचार आता हैं ?
(८) तीर्थंकर पितृवलय : पिता-पुत्र (२४ तीर्थंकर) परस्पर अवलोकन कर रहे हैं, ऐसे देखना । (कहे कलापूर्णसूरि - ४00wcomwwwwwwwwwwwww60 १५५)