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________________ (९) तीर्थंकर नामाक्षर वलय : तीनों चोवीसी के तीर्थंकरों के नामों के अक्षरों का वलय : (१०)विद्यादेवी वलय : १६ रोहिणी आदि विद्यादेवी वलय (११)२८ नक्षत्र (१२)८८ ग्रह (१३)५६ दिक्कुमारियां (१४)६४ इन्द्र (१५)२४ यक्षिणियां. (१६)२४ यक्ष (१७)स्थापना-चैत्यवलय : शाश्वत-अशाश्वत सभी चैत्य (जिनालय) नामकी तरह मूर्तिकी भी महिमा हैं ही । इसमें आबेहूब भगवान का स्वरूप दिखता हैं । पू. धुरंधरविजयजी म. : पहले देव-देवीओं का वलय... उसके बाद 'चैत्यवलय' । इसका क्या कारण ? पूज्यश्री : ये देव-देवी भी सम्यग्दृष्टि हैं, जीवंत हैं । भक्तों का नंबर पहले होता हैं । भक्त नहीं हो तो चैत्योंमें जायेगा कौन ? चैत्यों के बिना भक्त नहीं जमते । भक्त के बिना चैत्य नहीं जमते । दोनों परस्पर सापेक्ष हैं। * नवस्मरणमें यह सब हैं ही । जगचिंतामणिमें भी बहुत सा संक्षेपमें हैं । देववंदन की क्रियामें भी कितना सारा हैं ? दैनिक क्रिया भी ध्यान के लिए कितनी उपयोगी हैं ? यह यहां से जानने को मिलेगा । मैं स्वयं भी यहां तक इसके सहारे की पहुंचा हूं । बाकी कोई ध्यान-प्रक्रिया मेरे पास नहीं हैं । मात्र भगवान के भरोसे हं । (१८) ऋषभ आदि २४ के गणधर वगैरह साधुओं की संख्या का वलय । (१९) ऋषभ आदि २४ के मुख्य साध्वीओं की संख्या का वलय । (२०) ऋषभ आदि २४ के मुख्य श्रावकों की संख्या का वलय। (१५६ 0000000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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