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मातुश्री भमीबेन देढिया
१३-१०-२०००, शुक्रवार
अश्विन शुक्ला - १५
__ ध्यान विचार :
* प्रभु-शासन और उसे पहचानने के बहुत साधन हमारे पास हैं । ध्यान-योग की योग्यता विकसित करने के लिए चतुर्विध संघको अनुष्ठान करने की परंपरा पूर्वजोंने टिकाकर रखी वह हमारा पुण्योदय हैं । ये क्रियाएं जीवनमें उतारकर जीवंत रखें ।।
ध्यान की तरह आचार पालन की भी आवश्यकता हैं । (१६)मात्रा ध्यान :
अपनी आत्मा को तीर्थंकर की तरह समवसरणमें बैठकर देशना देती हो उस तरह इस ध्यानमें देखना हैं ।
योगशास्त्र की रचना हुई तब पू. हेमचंद्रसूरिजी के सामने यह ग्रंथ होगा, ऐसा लगता हैं ।
योगशास्त्र प्रकाश-८ श्लोक । १५-१६-१७ देखिये । आपको ख्याल आयेगा ।
अहँ की पांचवी प्रक्रियामें यह बात हैं । यह प्रत (ध्यान विचार की) भी पाटणमें से ही मिली हैं । तो हेमचन्द्रसूरिजी ने यह न देखी हो - ऐसा कैसे हो सकता है ? (कहे कलापूर्णसूरि - ४ 666 6 6 6 6 6 6 6 6 6 6 6 6 6 6 १५३)