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________________ काम करते हो, दूसरे प्रदेश दूसरा काम करते हो, ऐसा कभी हो नहीं सकता । इसीलिए ही जब मन भगवानमें जोड़ते हैं तब हमारी समग्र चेतना (असंख्य प्रदेशों सहित) भगवन्मयी बन जाती हैं । * बचपनमें मुझे भी ये पंक्तियां (पू. देवचंद्रजी की) समझमें नहीं आती थी, जितनी आज समझमें आती हैं, फिर भी मैं प्रेम से गाता था । अनुभूतिपूर्ण कृतिओं की यही खूबी हैं । आप कुछ न समझो, फिर भी बोलो तो वे आपके हृदय को झंकृत करती हैं, अस्तित्व की गहराइमें उतरती हैं । आत्म-शक्ति एक समर्थ महापुरुषमें जितनी शक्ति प्रकट हुई हैं, उतनी शक्ति सामान्य पुरुषमें भी होती हैं । परंतु उन समर्थ पुरुषोंने भौतिक जगत के प्रलोभनोंमें नष्ट होती शक्तिओं को अटकाकर आत्म-स्फुरणा द्वारा परमतत्त्वमें जोड़कर उन्हें प्रकट की । जब कि सामान्य मनुष्य की शक्तियां जमीनमें बीजारोपण के बाद जलसिंचन या स्वाद नहीं दिये अनंकुरित बीज जैसी हो जाती हैं । कहे कलापूर्णसूरि - ४00mmsssssmanawwwsson १४९)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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