SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देव और गुरुकी कृपा के बल पर ही ऐसी शक्ति प्रकट होती हैं । दृढ संकल्प से यह मासक्षमण हुआ यह सही, पर दृढ संकल्प के पीछे भी भगवान की शक्ति काम कर रही हैं, ऐसा माने । ऐसे भगवान का संयोग बारबार हो, इस प्रकार भव्यात्मा निरंतर प्रार्थना करता रहता हैं । मैं यदि भगवान और भगवान की आज्ञा को नहीं स्वीकारूं तो मेरा जीवन बेकार जाय, ऐसा लगना ही चाहिए । भगवान पर बहुमान बढो, भगवान की ऐसी प्रार्थना किसी जन्ममें सफल हो, ऐसी भावना निरंतर भाते रहो । भगवान अनेक स्वरूपमें, अनेक नाम से हैं । नामादि चार रूप भगवान सर्वत्र, सर्वदा और सर्वमें हैं। ऐसे भगवान मिलने के बाद यत्किचित् आराधना हो वह जीवन का सार हैं । इसके साथ धर्मचक्र के तपस्वीओं (८२ दिन के इस तपमें ४३ उपवास आते हैं ।) का अंतिम अट्ठम हैं । ऐसे तपस्वीओं से शासन जयवंत हैं । तप, जप, ध्यान द्वारा भगवान की शक्ति हमारे अंदर काम करती हैं । * द्रव्य का संक्रमण नहीं होता, पर भावका होता हैं । एक तपस्वी को देखकर दूसरे को तप करने का भाव होता हैं न ? यह भावका संक्रमण हुआ । ऐसे तपस्वीओं को शत-शत धन्यवाद देते हैं, अनुमोदना करते हैं । भगवान महावीरने स्वयं १४ हजारमें धन्ना अणगार की प्रशंसा की थी । श्री जगवल्लभसूरि स्वयं भी तपस्वी हैं । धर्मचक्र तपके आराधक हैं । स्वयं जीवनमें कर के अन्यों के पास करा रहे पूज्य यशोविजयसूरिजी : अनुमोदना का स्वर्णिम अवसर देने बदल मुनिश्री और धर्मचक्र तपस्वीओं के हम ऋणी हैं । अनुमोदना पर प्रार्थना का मुलम्मा चढाकर प्रभुको धरें । लंबी तपस्या की ताकत प्रभु ! आपने उन्हें दी तो हमें क्यों नहीं ? इस प्रकार प्रभु के पास मांगो । मांगेंगे तो मिलेगी ही । . प्रार्थना की शक्ति सर्वत्र स्वीकृत हुई हैं । (कहे कलापूर्णसूरि - ४0050swooooooom १४३)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy