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________________ यह शताब्दी प्रार्थनाकी शताब्दी हैं । निःशंक मैं कहता हूं कि यह शताब्दी योग और प्रार्थना की हैं । प्रार्थना विषयक कितनी सुंदर पुस्तकें प्रकट हो रही हैं ? रेट फिलीप द्वारा लिखित प्रार्थना की एक पुस्तक की ५० लाख नकलें बिक गइ हैं । प्रार्थना विषयक इस पुस्तक पर लेखक लिखता हैं : 'यह पुस्तक मैंने नहीं, परम चेतनाने मुझसे लिखवाइ हैं । इस्राइल के प्रवासमें रात को प्रकाश भी नहीं मिलता, ऐसा स्थान था, पर भव्यता इतनी कि प्रभु-चेतना नीचे उतर आये, किंतु लिखना कैसे ? दूर-दूर पब्लिक टोयलेट की लाइटमें लिखा ।' ऐसा वैश्विक प्रार्थना का लय विश्वमें घूम रहा हैं । प्रार्थना के ही उद्गाता पूज्यश्री हमारी समक्ष हैं, यह हमारा सद्भाग्य हैं। यह चातुर्मास हमारी नई पेढी के लिए तथा सबके लिए अविस्मरणीय बना रहेगा । क्योंकि यहां एक ही मंच पर सभी विराजमान होते रहे थे । पूज्य जगवल्लभसूरिजी : 'करण, करावण ने अनुमोदन, सरिखा फल नीपजाया ।' पूज्यश्री की निश्रामें पूज्यश्री के शिष्यने भयंकर गरमीमें मासक्षमण की तपश्चर्या की । उसके साथ आज से धर्मचक्र के तपस्वीओं को अंतिम अट्ठम भी हैं । साधना हर कोई नहीं कर सकता । पूज्यश्री जैसी भक्ति तो जीवनमें आनी बहुत मुश्किल हैं, किंतु अनुमोदना द्वारा भक्ति का आदर प्राप्त करें । अनुमोदना से ही यह गुण आयेगा । प्रार्थनातः इष्टफलसिद्धि । - पू. हरिभद्रसूरिजी जिसकी प्रार्थना करते हैं वह मिलता ही हैं । पूज्यश्री देने के लिए ही बैठे हैं । मेरे जैसे रांक को लेना नहीं आता । पूज्यश्री के पास भक्ति का अखूट खजाना हैं, पर मैं प्राप्त नहीं कर सक रहा हूं । आ नहीं सक रहा हूं। * ऐसी गरमीमें मुझे तो अंतिम चार दिन से शाम को (१४४ 00000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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