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________________ पालिताना सामुदायिक प्रवचन, वि.सं. २०५६ ११-१०-२०००, बुधवार अश्विन शुक्ला १३ * मुनिश्री अमितयशविजयजी के मासक्षमण का पारणा तथा पू. जगवल्लभसूरिजी के निश्रावर्ती धर्मचक्र के तपस्वीओं के अंतिम अट्टम के पच्चक्खाण । पूज्य आचार्यदेवश्री कलापूर्णसूरिजी : विघ्न टळे तप- गुण थकी, तपथी जाय विकार; प्रशंस्यो तप- गुण थकी, वीरे धन्नो अणगार । * सिद्धाचल की गोदमें विपुल संख्यामें आराधक आराधना कर रहे हैं । सिद्धाचल की यात्रा करनी अर्थात् सिद्धों की यात्रा करनी, ऐसी भावना प्रकट न हो वहां तक बार बार सिद्धाचलकी यात्रा करते रहो । यहां मासक्षमण, ५१ उपवास वगैरह अच्छी संख्यामें हुए । हमारे मुनिश्री अमितयशविजयजीने अश्विन महिने की ऐसी गरमीमें मासक्षमण पूरा किया हैं । पहले जोग (योगोद्वहन) होने के कारण नहीं कर सके । १४२ क कहे कलापूर्णसूरि
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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