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________________ 'युधिष्ठिर क्या कर रहा हैं ?' 'शांत हैं ।' 'भीम क्या कर रहा हैं ?' 'गदा साफ कर रहा हैं ।' 'सहदेव-नकुल क्या कर रहे हैं ?' 'नकुल-सहदेव शून्य मनस्क हैं ।' 'अर्जुन क्या कर रहा हैं ?' 'ठंडे पानी से नहा लो । क्योंकि अर्जुन बदल चूका हैं । श्रीकृष्ण और अर्जुन की जुदाइ की दिवाल टूट गई हैं । कृष्ण के स्थान पर ही अर्जुन आ गया हैं ।' भगवान के साथ जो भक्त अभेद साधे उसे कोई हरा नहीं सकता । यहां कोई नाटक नहीं हैं। ध्यान की प्रक्रिया हैं । जन्मकल्याणक के समय किस तरह ध्यान करना ? उसका यह दृश्य हैं । वस्तुतः हृदयमें प्रभु का जन्म करना हैं । ऐसा हो तो दुनिया की कोई भी शक्ति परास्त नहीं कर सकती । प्रभु के साथ सभी अभेद साधो यही अपेक्षा हैं ।। पूज्य कलाप्रभसूरिजी : प्रभु-भक्ति के महोत्सवमें यहां बैठे हुए श्रावकों को सुनने का नहीं, देखने का रस हैं । ऐसी भयंकर गरमीमें भी मंडप के नीचे हजारों की पब्लिक ३-३ घण्टे से भक्ति से खुश हो रही हैं । यह भगवान का पुण्य-प्रकर्ष हैं । हम सबके पीछे भगवान की शक्ति हैं । क्योंकि भगवान अचिंत्य शक्तिशाली हैं। आज इस स्नात्र-महोत्सवमें माता-पिता बनने वाले विजयवाडावाले धर्मीचंदजी परम आनंदमें हैं । वे विचार रहे हैं : 'अचानक ही यह ल्हावा मिला हैं । तो मैं आजीवन चतुर्थ व्रत स्वीकार लूं ।' अभी वे पूज्यश्री के पास आयेंगे और ४थे व्रत का स्वीकार करेंगे । (कार्यक्रम के बाद जामनगर से आये हुए डोकटरों की टीम का सन्मान ।) डोकटरोंने कहा : हम प्रत्येक चातुर्मासमें स्वेच्छा से इस तरह पालीताणा सेवा के लिए आना चाहते हैं ।) कहे कलापूर्णसूरि - ४00swwwwwwwwwwwwwwwws १३३
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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