SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ EXA5 00RATOR BASATRINASE-ROMANTON पू. मुनिश्री कंचनविजयजी ८-१०-२०००, रविवार अश्विन शुक्ला - १० दोपहर वर्धमान संस्कृति केन्द्र मुंबई के द्वारा आयोजित प्रभु - जन्म - महोत्सव । * पूज्य आचार्यदेव कलापूर्णसूरीश्वरजी महाराज : कर्म से मुक्ति मिले तो गुण-संपत्ति मिलती हैं । दुनिया बाह्य संपत्ति प्राप्त करने का प्रयत्न करती हैं, पर साधक गुण संपत्ति प्राप्त प्राप्त करने का प्रयत्न करता हैं । उसका उपाय गणधरों को भी भक्तिमें दिखा हैं । वे भी कहते हैं : तित्थयरा मे पसीयतु । ऐसी भक्ति हृदयमें बस जाये तो काम हो जाये । मुक्ति से भक्ति ज्यादा अच्छी लगी - ऐसा कहनेवाले सचमुच तो भक्ति से ही मुक्ति मिलती हैं, ऐसा कह रहे हैं । तृप्ति महत्त्व की हैं या भोजन ? भोजन मिलेगा तो तृप्ति कहां जायेगी ? मुक्ति का उपाय भक्ति हैं । भक्ति होगी तो मुक्ति कहां जायेगी ? भक्ति से मुक्ति का सुख यहीं पर अनुभव कर सकते हैं । जिन्होंने यह अनुभव किया हैं उन्होंने अपनी कृतिमें यह दिखाया हैं । प्रभु का यह जन्म-महोत्सव भक्ति रूप ही हैं। जब भी भगवान का जन्म होता हैं तब जगतमें प्रकाश-प्रकाश फैल जाता हैं । ऐसे भगवान पर भक्ति उमटनी चाहिए । उनकी आज्ञा के (कहे कलापूर्णसूरि - ४00000000000000000000 १३१)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy