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सातवीं गुणश्रेणिमें उपर के तरह की मोहनीय कर्म की २१ प्रकृतियां उपशांत होती हैं, उसे 'उपशान्त-मोह' अवस्था कहते हैं ।
आठवी गुणश्रेणिमें शेष मोहनीयकर्म की २१ प्रकृतिओं के क्षय का प्रारंभ होता हैं, उसे 'मोह-क्षपक' अवस्था कहते हैं ।
नौंवी गुणश्रेणिमें ये ही शेष मोहनीय कर्म की प्रकृतिओं का अर्थात् मोह का सर्वथा क्षय होता हैं, उसे 'क्षीण-मोह' अवस्था कहते हैं ।
(११)नाद (१२) परमं नाद ध्यान :
खाली पेट हो तब कानमें अंगुली डालने पर जो आवाज सुनाई देती हैं वह द्रव्य-नाद हैं ।
अंगुली के बिना स्वयं विविध वाजिंत्रों की स्पष्ट अलग आवाज सुनाई देती हैं वह परम-नाद हैं ।
___ संकल्प-विकल्प हो वहां तक नाद सुनाई नहीं देता, मन अत्यंत शांत अवस्थामें हो तब अनाहत नाद सुनाई देता हैं ।
किंतु यह साध्य नहीं हैं, मंझिल नहीं हैं, मात्र माईलस्टोन हैं, यह मत भूलना । यहां अटकना नहीं हैं । परमात्मदेव को मिले बिना कहीं भी नहीं अटकना हैं । हमारी आत्म-विशुद्धि हुई उसके ये चिन्ह जरुर हैं, आपका मन भगवानमें लीन बन जाने पर इन नादों की आवाजें बंद हो जाती हैं। मंदिरमें घण्टनाद अनाहत का ही प्रतीक हैं । प्रारंभमें घण्टनाद करना, उसके बाद घण्टनाद छोड़कर प्रभुमें डूब जाना ।
* नाद का संबंध प्राण के साथ हैं ।
भगवान बोलते हैं तब परा वाणी से क्रमशः वैखरीमें आते हैं । साधक की साधना वैखरी से परा तक की हैं ।
* यह जानने के बाद कोई भी अनुष्ठान या आपकी आराधना न छोड़ें । उसे इन प्रक्रियाओं के द्वारा विशिष्ट बनाने का प्रयत्न करें ।
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(१३० Wooooooooooooooo0000 कहे कलापूर्णसूरि- ४)