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खीचन प्रतिष्ठा प्रसंग, वि.सं. २०५८
८-१०-२०००, रविवार
अश्विन शुक्ला - १०
* ध्यान विचार :
* ध्यान के विभाग अलग-अलग भले हो, पर सबकी मंझिल एक हैं । सबकी नियति अलग अलग होती हैं, इसलिए ध्यान की भी अलग-अलग पद्धतियां अलग-अलग व्यक्तिओं को लागू पड़ती हैं।
* कम्मपयडि, पंचसंग्रह वगैरह का अभ्यास भी यहां जरूरी हैं । बृहत्संग्रहणी, क्षेत्रसमास वगैरह भी जरूरी हैं । मेरी पहले ऐसी समझ थी कि ध्यानमार्गमें इन सबकी क्या जरूरत ? पर ध्यानविचार पढते समझ आई : ये सब ग्रंथ ध्यान के लिए अत्यंत जरूरी हैं। क्योंकि इस ध्यानमें सभी दृष्टियां होनी जरूरी हैं । सचमुच तो ध्यानमें प्रवेश करने के बाद ही कर्मग्रंथादि के रहस्य समझमें आते हैं ।
कर्मग्रंथ तो पढे पर उसका संबंध ध्यान के साथ क्या हैं ? वह समझना हो तो ध्यान-विचार जरुरी हैं । सब कर्म-भेदों का ज्ञान हमारी वीर्य-शक्ति विकसित करता हैं । और विकसित वीर्यशक्ति से ध्यानशक्ति उत्पन्न होती हैं ।
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