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________________ पू. देवचंद्रजी म. की आत्मानुभूति के बाद आई हुई यह मस्ती हैं । खुमारी हैं । ये शब्द पढ़ते आज भी हृदयमें मस्ती प्रकट हो सकती हैं । I हमारी मंद ज्योति तेजस्वी ज्योति ( प्रभु की ) में मिलने पर हमारी ज्योति अखूट बन जाती हैं । लोगस्स सूत्र ज्योति का ही सूत्र हैं । ऐसे परम ज्योतिर्धर प्रभु के पास गणधरोंने तीन चीजों की ( आरोग्य, बोधि, समाधि) याचना की हैं । परम आरोग्य मोक्ष हैं । इसके मुख्य दो कारण बोधि और समाधि हैं । ये तीनों (चीजें ) मिलेंगी तो भगवान के प्रभाव से ही मिलेंगी । भगवान पर और भगवान की आज्ञा पर बहुमान बढेगा उतने प्रमाणमें विशुद्ध प्रकार की बोधि- समाधि मिलेगी । भाव विभोर होकर प्रभु-गुण गाने से कर्म की निर्जरा होते अपूर्व आनंद बढता हैं । ऐसे ध्यान के लिए खास पूर्वभूमिका तैयार करनी पड़ेगी । लब्धिधर सभी मुनि परमज्योति ध्यान के अभ्यासी होते हैं । लब्धि एक शक्ति हैं । इसे प्रकट करनेवाले ऐसे ध्यान हैं । यह ज्योति हमारे अंदर भी प्रकट हो इसलिए गणधरोंने लोगस्स के अंतमें कहा हैं : 'चंदेसु निम्मलयरा' (सम्यग् - दर्शन ) 'आइच्चेसु अहियं पयासयरा' (सम्यग् - ज्ञान ) 'सागरवरगंभीरा' (सम्यग् चारित्र ) । ऐसे सिद्धों का ध्यान करें तो कुछ उनकी झलक हमारे अंदर भी आयेगी । १२० ( ९ ) बिन्दु ध्यान : योगशास्त्र का ८वां प्रकाश तदेव च क्रमात् सूक्ष्मं ध्यायेत् वालाग्रसन्निभम् । क्षणमव्यक्तमीक्षेत, जगज्ज्योतिर्मयं ततः ॥ प्रच्याव्य मानसं लक्ष्यादलक्ष्ये दधतः स्थिरम् । ज्योतिरक्षयमत्यक्षमन्तरुन्मीलति क्रमात् ॥ कळ योगशास्त्र, ८वां प्रकाश कहे कलापूर्णसूरि - ४
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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