SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्योति का ध्यान धरने से संपूर्ण जगत ज्योतिर्मय लगता हैं । उस समय अक्षय ज्योति प्रकट होती हैं । आगे अरिहाण स्तोत्रमें षोडशाक्षरी मंत्र का ध्यान बिंदुपूर्वक का आयेगा । एकेक अक्षर को वहां चमकते देखने हैं । द्रव्य से बिंदु : पानी की बुंद । भाव से कर्म-बिंदु का झरना । मंत्रोंमें बिंदु का महत्त्वपूर्ण स्थान हैं : 'नमो अरिहंताणं' यहां बिंदु हैं न ? 'ओंकारं बिंदु-संयुक्तं' कुछ लोग 'ओकारं' बोलते हैं, वह गलत हैं । 'सिढिलीभवंति असुहकम्माणुबंधा' इस ध्यान से कर्म ढीले बनकर झड़ जाते हैं । राजस्थानमें शुद्ध घी इतना जम जाता हैं कि हाथ से भी उखड़ता नहीं है । अग्नि का ताप लगते वह ढीला बन जाता हैं, फिर प्रवाही बनता हैं । ध्यान की अग्नि से कर्म भी ढीले होकर झरने लगते हैं । . कर्म ज्यों ज्यों क्षीण होते जाते हैं त्यों त्यों प्रसन्नता बढती जाती हैं । यही उनकी निशानी हैं । दूसरे किसी को बताने के लिए नहीं, गुप्त रखकर समझना हैं । मंत्र वगैरह जाहिर करने से, उससे होती लब्धि बताने से उसका विकास अटक जाता हैं । उदाः स्थूलभद्र । जैनेतरोंमें बिंदुनवक की बात आती हैं, उस विषय पर अवसर पर बात करेंगे । अजैनोंमें भी जो शुभ हैं वे यहीं से ही उडे हुए बिन्दु हैं, ऐसा समझें ।। (कहे कलापूर्णसूरि - ४00ooooooooooooooo000 १२१)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy