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________________ R AMADHURIMANIMASE ऊटी में पूज्यश्री, वि.सं. २०५३ RAMITRAPAT ५-१०-२०००, गुरुवार अश्विन शुक्ला - ८ * सोपान-पंक्ति उपकारी जरुर हैं, पर वह कोई साथमें लेकर उपर नहीं जा सकते । मन, वचन, काया साधन हैं, आत्मा प्राप्त करने के लिए उनको कोइ साथमें ले जा नहीं सकते । विचारों को भी आत्मघरमें आने की मना हैं । * इन सबके द्वारा मोह को मारना हैं। मोह को न मारो वहां तक मन थोड़ी देर स्थिर होकर फिर चंचल बनेगा, मोहग्रस्त बनेगा । सचमुच, मनको नहीं मारना हैं, मोह को मारना हैं । मोह के कारण ही मन चंचल बनता हैं । इसीलिए ही मोह को मारते मन स्थिर बन जाता हैं । कुत्ते की तरह लकड़ी को नहीं मारना हैं, सिंह की तरह लकड़ी से मारनेवाले को मारना हैं । मन को नहीं मारना हैं, किंतु मन को चंचल बनानेवाले मोह को मारना हैं । मोह के कारण ही संसार बढा हैं । मोह के कारण विकल्प होते हैं। मोह मरते ही विकल्प रवाना होने लगते हैं । विकल्प निकल जाये, फिर भी उपयोग तो रहेगा ही । [१०० as a sn a co 60 कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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