SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपेक्षावाला कभी ऐसा ध्यान कर नहीं सकता । ऐसी भक्ति द्रव्य से शून्य बन सकती हैं, भाव से शून्य नहीं बन सकती । मंत्रविद् भी मानते हैं कि परामें से पश्यन्ती आये तब सफलता समझें । इसके पहले आनंद की अनुभूति नहीं होती । का अरई ? के अणाणंदे ? साधु को अरति क्या ? अनानंद क्या ? एरंडी का तेल मल को निकालकर स्वयं निकल जाता हैं, उसी तरह शुभ विकल्प निर्विकल्पमें ले जाकर स्वयं निकल जाता हैं। सीढ़ियों जैसे शुभ विकल्प हैं । जो उपर जाने के लिये सहायक बनते हैं | अंतमुहूर्त वहां रहकर फिर विकल्प के सोपान के सहारे नीचे योगीको आना पड़ता हैं । विकल्प का संपूर्ण त्याग कर नहीं सकते । उपयोग आत्मा का स्वभाव हैं । विचार मन का स्वभाव हैं । द्रव्य-मन गया, भाव-मन उपयोग के समय रहता हैं । द्रव्य मन से विकल्प होते हैं । द्रव्य - शून्य के १२ प्रकार : क्षिप्त, दीप्त, मत्त, राग, स्नेह, अतिभय, अव्यक्त, निद्रा, निद्रा-निद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला, स्त्यानर्द्धि । द्रव्य - शून्य तो तद्दन सरल हैं । शराब पीकर भी आप द्रव्य से शून्य बन सकते हो । शराब पीनेमें कौन सा आनंद हैं ? निद्रामें आनंद क्यों आता हैं ? क्योंकि उस समय विचार नहीं होते । विचार नहीं होते तब मन को आराम मिलता हैं । यह आराम वही आनंद । इसीलिए ही मनुष्य बार बार दारु पीने के लिए ललचाता हैं या नींद करने के लिए ललचाता हैं । आत्म जागृति आ जाय तो द्रव्यशून्यमें से भावशून्यमें जा सकते हैं, किंतु भावशून्यमें जाना बहुत कठिन हैं। क्योंकि मन दो ही दिशा जानता हैं : या तो विचार करना अथवा जड़तामें - नींदमें सरक जाना । इसलिए ही आप देखते होंगे : विकल्प जाने पर तुरंत ही नींद आती हैं । कभी मैं भी ठगा जाता हूं । क्षिप्त प्रथम और थीणद्धि अंतिम ली हैं। उसमें क्रमशः ज्यादा से ज्यादा जड़ता और ज्यादा से ज्यादा सुषुप्ति रहती हैं । कहे कलापूर्णसूरि ४
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy