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________________ विकसित होता जाता हैं । उसी तरह हम भी छोटे थे तब किसीने (गुरु आदिने) हमें सीखाया था, वह याद हैं न ? दूसरोंने हमें सीखाया हैं । तो हमें भी दूसरों को नहीं सीखाना ? दूसरों को सहायता करनी यही यहां सीखना हैं । ज्ञानका प्रकाश आये तब यह सब समझमें आता हैं । दीपक एकांतमें छोटीसी जगह पर न रखकर ऐसे स्थान पर रखते हैं कि जिससे उसका प्रकाश सर्वत्र फैलें । दीपक दीपक के लिये नहीं हैं, पदार्थों को प्रकाशित करने के लिए हैं । भगवान जगतके दीपक हैं । __ हम छोटे थे, तब फलोदीमें इलेक्ट्रीक नहीं थी । प्रत्येक गलीमें लालटन की व्यवस्था थी। लोग आकर रोज शामको लालटन लगा जाते थे । ____दीपक किरणोंसे प्रकाश फैलाता हैं, उसी तरह भगवान देशनारूपी किरणोंसे प्रकाश फैलाते हैं । यहां लोकसे सम्यग्दृष्टि संज्ञी जीव लेने हैं । देशनाकी किरण उसे ही प्रकाशित करती हैं जो सम्यग्दृष्टि संज्ञी जीव होता हैं । गाढ मिथ्यात्ववाले का हृदय भगवान प्रकाशित नहीं कर सकते । उल्लूको सूर्य कुछ बता नहीं सकता । हम यदि घोर मिथ्यात्वी बनकर प्रभुके पास गये हो तो भगवानके वचन हमें कुछ भी कर नहीं सकते । हमारे हृदयका अंधेरा अभेद्य ही रहता हैं । हमने प्रत्येक भवमें ऐसा ही किया हैं । इस भवमें भी शायद चालू ही हैं । मैं भी साथमें हूं । पूज्य हेमचंद्रसागरसूरिजी : आप ऐसा बोले वह शोभता नहीं । हम निराश हो जाते हैं । पूज्यश्री : यह एक पद्धति हैं । मुझे अभिमान न आये, वह मुझे नहीं देखना ? जामनगरमें व्याख्यान शुरु किये उसके बाद शंखेश्वरमें पू.पं. भद्रंकर वि.म. बगैरह के साथ रहना - प्रवचन देना हुआ । व्याख्यान के बाद पू.पं. भद्रंकर वि.म. को पूछा : प्रवचनमें कुछ सुधारने जैसा ? पू.पं. भद्रंकर वि.महाराजने कहा : व्याख्यानमें 'आप' 'आप' के स्थान पर 'हम' शब्दका प्रयोग करना । तथा स्वयंकी तरफसे, स्वयंकी बुद्धिसे कुछ बोलना नहीं । (७८wwwww 666666 कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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