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मानो, चाहे न मानो, पूर्व के अनेक भवों की कमाई के रूप में ही ऐसा भव और ऐसे भगवान मिले हैं । यह निश्चित बात है । ऐसे भव का एक पल भी आप व्यर्थ न जाने दें ।
'समयं गोयम मा पमायए' यह सूत्र सदा याद रखें । चिन्तामणि, कल्पवृक्ष, इन्द्रत्व, चक्रित्व अथवा अन्य कुछ भी मिलना सरल है, परन्तु प्रभु की सेवा मिलना कठिन है ।
संसार अर्थात् भयंकर सागर, जिसमें मिथ्यात्व का जल भरा हुआ है । अनेक कदाग्रहों के मगरमच्छ आदि जलचर जीव हैं । ऐसे इस संसार में भगवान मिलें कहां से ?
ऐसे दुर्लभ मानव-भव का जीवन भी कितना चंचल है ? क्षण भर पूर्व खुली आंख क्षण भर के पश्चात् बंद भी हो जाये । किसे खबर है ? मद्रास में हम देखते कि कितने ही बिचारे 'हार्ट' आदि के ओपेरशन के लिए आते । छोटे बच्चों के भी 'हार्ट' के ओपरेशन ! उसमें भी जीवन-मरण के मध्य झोले खाते मनुष्य ! देखकर आयुष्य की अनित्यता याद आती है ।
मेरी नित्य की आदत, वापरने से पूर्व जिनालय में जाकर चैत्यवन्दन करने की ! उससे पूर्व मैं वर्षीदान की शोभायात्रा में गया । (भुज - वि. संवत् २०४६) मुझे कहां पता था कि अब मैं जिनालय में नहीं, होस्पिटल में होऊंगा ?
हजारों मनुष्य थे, परन्तु किसी को नहीं, मुझे ही गाय के कारण धक्का लगा, फ्रैकचर हुआ, गोला टूटा । मैं होस्पिटल में दाखिल हुआ । याद रहे यह क्षण अपने हाथ में है । आगामी क्षण हाथ में नहीं है । जितना हुआ उतना अपना । अतः करने का शीघ्र कर लो ।
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मद्रास में भी चले जाने जैसी दशा हो गई थी । ऐसी स्थिति में से बचानेवाला भगवान हैं। मैं तो यह मानता हूं । भगवान में मैं माता का स्वरूप देखता हूं । वह अपने बालक को कैसे दुःख होने दे ?
भगवान अपना सच्चा स्वरूप भक्त को ही बताते हैं । भक्त के बिना भगवान एवं भक्ति की बात दूसरे को समझ में ही नही आती । उसे तो नशा अथवा पागलपन ही लगता
५८ कळ
OOOOOOOO १ कहे कलापूर्णसूरि -