________________
धुरन्धरविजयजी म. : 'समिइ भावणा गुत्ती' यहां मध्य में भावना कैसे घुस गई ?
उत्तर : भावना के बिना गुप्ति आ नहीं सकती यह बताने के लिए यह क्रम बताया है ।
* जयणा के बिना मुनि-जीवन नहीं होता । मक्खी मारने की न छूट सके ऐसी आदतवाले एक प्रव्रजित व्यक्ति को उत्प्रव्रजित किया गया । यह घटना बनी हुई है ।
- यदि छ: जीवनिकाय की दया न हो तो हममें और भिखारी में कोई अन्तर नहीं है ।
_ 'निर्दय हृदय छः कायमां, जे मुनि वेषे प्रवर्ते रे; गृहि-यति लिंग थी बाहिरा, ते निर्धन गति वर्ते रे...'
- उपा. यशोविजयजी म. * करण का अर्थ साधन भी होता है। व्याकरण में आता है : साधकतमं करणम् । यह अर्थ यहां नहीं लेना है, किन्तु यहां करण याने वीर्योल्लास । उस वक्त ऐसा वीर्योल्लास प्रबल होता है कि कर्मों का नाश जाये । करण अर्थात् समाधि । अपूर्व भावों से उत्पन्न इस दशा के बिना कर्म कटते नहीं हैं, ग्रन्थि का भेदन नहीं होता ।
* सात प्रकार के अध्यात्म में 'देववंदन' आदि को भी अध्यात्म माना है।
अध्यात्म और भावना में अन्तर क्या ? इन्हीं पदार्थों को पुनः पुनः भावित बनाने से भावना आती है । तत्पश्चात् ध्यान आता है। चिन्ता - भावनापूर्वकः स्थिराध्यवसायः ध्यानम् ॥
- 'ध्यान-विचार' चिन्ता में - सम्पूर्ण द्वादशांगी; चिंतनात्मक श्रुतज्ञान ।
भावना में दर्शन - चारित्र, वैराग्य, अर्थात् भावनात्मक पंचाचार का पालन ।
ये दोनों हों तो ध्यान आयेगा ही ।
ये समस्त पदार्थ आपके समक्ष रखे हैं, चिन्तन करें, भावित करें । आप सब मुझसे भी अधिक श्रेष्ठ वक्ता हैं । इस वख्त आये हैं उस प्रकार पुनः पुनः आयें ।
आचार्यश्री यशोविजयसूरिजी दस मिनट तक कुछ कहेंगे । (कहे कलापूर्णसूरि - ३00mmonsomwwwmoon ११)