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________________ 300000000000 पू. देवेन्द्रसूरिजी के साथ, वि.सं. २०२५, फलोदी २२-८-२०००, मंगलवार भाद्र. कृष्णा -७ * 'नमुत्थुणं' सूत्र में गणधरों ने निकट के अनुभव से बताया है कि भगवान उन्हें कैसे लगे ? स्वरूप-सम्पदा, उपयोगसम्पदा आदि पढ़ने से भगवान की महिमा के सम्बन्ध में अधिक जानकार बन कर हम उनके प्रति अधिक भक्ति वाले बन सकते प्रभु के प्रति ज्यों ज्यों प्रीति में उल्लास बढ़ता है, त्यों त्यों भक्ति बढ़ती है । प्रीति ओर भक्ति बढ़ने पर उनकी आज्ञा पालन करने का उल्लास बढ़ता है । साक्षात् परमात्मा मिल जाये तो भी उनके पास समवसरण की देशना के अतिरिक्त अधिक समय तक बैठने को नहीं मिलता । शेष समय में प्रभु के नाम, मूर्ति आदि ही आधार रूप हैं । प्रभु के प्रति प्रेम हो तो प्रभु के नाम, मूर्ति आदि के प्रति प्रेम होगा ही । प्रभु के नाम, गुण, मूर्ति आदि के द्वारा भक्त निरन्तर सम्पर्क में रहता है। जिन भगवान के प्रति अपार प्रेम उमड़ता है वे भगवान कैसे होंगे ? यह जानने के लिए मन लालायित बनता ही हैं । यह (कहे कलापूर्णसूरि - ३ 0665 २७७)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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