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'नहीं, साहेब ! ऐसा नहीं हो सकेगा। जो चौबीसों घंटे आपकी सेवा करते हैं, उनकी सेवा क्या हम नहीं करें ?'
यह उनका उत्तर हृदय पर प्रहार करे वैसा था ।
'Week End हो तब Hill Station पर न जाकर ऐसे किसी गांव में जाकर देखें। भक्ति दिखाई देगी ।' ऐसा धनाढ्यों को कहने का मन हो जाता है ।
मुझे तो ऐसी अनेक श्राविका-माताएं मिली हैं। ग्यारह वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की है, अनेक माताओं का स्नेह मिला है।
अधिक मुझे कुछ नहीं कहना है । समय बुरा है । हम में भी दोष हो सकते हैं । परन्तु आप उन्हें नजर अंदाज करें । गुण देख कर प्रसन्न होकर कृतार्थ बनें ।
पूज्य हेमचन्द्रसागरसूरिजी : प्रथम से अन्त तक बीच में झटके लगाने वाले Open Batsman मुनिश्री धुरन्धरविजयजी अन्त में बोलते हैं ।
पूज्य मुनिश्री धुरन्धरविजयजी :
पालीताणा चातुर्मास निश्चित हुआ तब विचार आया कि वहां जाकर प्रभु की आराधना में लीन रहेंगे, परन्तु यहां आने पर सबकी ओर से इतना प्रेम मिला कि बार बार आपके समक्ष आना पड़ा ।
प्रभु-संघ का अत्यन्त ही महत्त्व है, जिसकी कल्पना नहीं हो सकती । जो कोई ऊंचे आये हैं वे संघ को हृदय में स्थान देकर ही आये हैं ।
स्वयं से संघ को जिन्हों ने अधिक माना वे ही वस्तुपाल, तेजपाल, कुमारपाल आदि बन सके हैं । झांझण मन्त्री बड़ा संघ लेकर कर्णावती (वर्तमान अहमदाबाद) आये । वीर धवल के वंशज सारंगदेव राजा थे । मन्त्री को कहा : 'आप भोजन करने आयें, साथ में अच्छे व्यक्तियों को लायें ।'
झांझण : 'यहां सभी अच्छे व्यक्ति हैं । एक को भी छोड़ कर नहीं आ सकता । सब को भोजन करा सको तो ही मैं आ सकता हूं।
राजा : 'मेरी यह शक्ति नहीं है ।'
झांझण : 'सम्पूर्ण गुजरात को मैं भोजन कराऊंगा, आप पधारें।' (२६४
Desses कहे कलापूर्णसूरि - ३)