________________
संघ के द्वारा संघ की भावना उत्पन्न होनी चाहिये ।
किसी भी संघ में होने वाली देवद्रव्य की आमदनी भारत के किसी भी संघ में भेजते हैं । यह है संघ-भावना !
हम जितने संगठित रहेंगे, उतना बल बढ़ेगा । वर्तमान युग में संगठित होने की विशेष आवश्यकता है। 'संघे शक्तिः कलौ युगे ।'
एकत्रित रहेंगे तो बल बढ़ेगा । यदि बिखरे हुए रहेंगे तो टूट जायेंगे ।
'वह संगठन संगठन नहीं, जिसमें फूट हैं ।
वह व्यापार व्यापार नहीं, जिसमें लट हैं । प्रामाणिकता की पूजा तो हर जगह होती है, -
वह धर्म धर्म नहीं, जिसमें झूठ है ।' संघ-भावना की कदर आचार्य भगवान भी करते हैं । इसीलिए वे आपकी चातुर्मास (वर्षावास) की विनती स्वीकार करते हैं ।
पूनड़ ने नागपुर से सिद्धाचल का संघ निकलवाया था तब वस्तुपाल विनती करके उस संघ को धोलका में लाये थे ।
'संघ की उड़ती मिट्टी भी मंगलकारी है ।' यह वस्तुपाल का कथन है । समस्त यात्रियों के पांवों का दूध से प्रक्षाल करके वस्तुपाल सबकी भक्ति करते थे ।
___अंकेवालिया में वस्तुपाल की मृत्य हुई तब १३वां संघ था । तब आचार्य ने कहा था - 'सचमुच, जिनशासन के गगन का सूर्य अस्त हो गया । उस समय उन आचार्य भगवन् ने छ: विगई का त्याग किया था । आप यदि गरीब हैं तो सुपारी - मुहपत्ति आदि से भी इस संघ की भक्ति कर सकते हैं ।
सन्तति का समर्पण करके भी उत्तम श्रमण संघ की भक्ति हो सकती है।
* आपका पुत्र बीमार हो और साधु भी बीमार हो तब पहले आप कहां जायेंगे ?
पुत्र मेरा है परन्तु साधु, उपाश्रय, मन्दिर आदि किसके हैं ? संघ के हैं न ? क्या संघ में आप नहीं हैं ?
कितने ही सामूहिक प्रश्न जल रहे हैं, तब 'मेरे क्या ?' कह कर बैठे नहीं रहते हैं न ? (कहे कलापूर्णसूरि -
३ assooooooooooooom २५५)