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________________ परमलोक की यात्रा प्रारम्भ करनी है । इस संघ को प्राप्त करने की यही सफलता है। पूज्य गणिश्री पूर्णचन्द्रविजयजी : _रेलवे में तीन लाइन होती हैं । अपने मन में तीन लाईन हैं - ब्रोड गेज, मीटर गेज एवं नैरो गेज । 'नैरो लाइन' संकड़ी होती हैं, स्पीड कम होती है और बोझा भी अधिक नहीं उठा सकती। मीटर गेज उससे चौड़ी, स्पीड़ अधिक और बोझा भी अधिक उठा सकती है, जबकि ब्रोड गेज उससे भी स्पीड़ आदि में अधिक होती हैं । मनुष्यों के मन भी तीन प्रकार के होते हैं । कोई मानता है - मैं सुखी होऊं । कोई मानते हैं - हम सुखी बनें । कोई मानते हैं - अपन सुखी बनें । तीर्थंकरों की भावना होती है कि अपन सुखी बनें । तीर्थंकर स्वयं इस संघ को नमन करते हैं। इससे ख्याल आयेगा कि व्यक्ति महत्त्वपूर्ण नहीं है, संघ महत्त्वपूर्ण है। संघ भावना, व्यक्तित्व का अहंकार तोड़ डालता है, विशाल भावना पैदा करता है । __ भगवान द्वारा स्थापित ऐसे संघ के साधुओं को देख कर क्या अहोभाव जागृत होता है ? 'ण तित्थं विणा निग्गंठेहिं ।' साधुओं के बिना तीर्थ नहीं होता । वर्तमान विज्ञान युग में भी एक भी पैसे के बिना, एक भी वाहन के बिना जीवन जीने वाले ये जैन साधु हैं, क्या यह विचार आता है ? क्या यह लगता है कि भगवान के ये साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका आदि हैं ? संघ तीर्थंकरों का प्रोडक्शन है। पांचों परमेष्ठियों की यह खान है। इस संघ में ज्ञानी, ध्यानी, दानी आदि अनेक गुणवान हैं । कल्पवृक्ष का आधार नन्दनवन है, तेज का आधार चन्द्रमा है, उस प्रकार गुणों का आधार संघ है। एक साधु की साधना सम्पूर्ण जगत् को बचा सकती है । आज भी कुछ ठीक है वह इस संघ का प्रभाव है । (२५४ womansooooooooooooons कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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