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________________ डोली में विहार २०-८-२०००, रविवार भाद्र कृष्णा - ५ सामुदायिक प्रवचन; विषय : संघ-भक्ति सात चौबीसी धर्मशाला पूज्य मुनिश्री दर्शनवल्लभविजयजी : * यह पावन भूमि है । अनन्त सिद्धों की भूमि है । हमारे उपकारी गुरुदेव पूज्य प्रेमसूरिजी लगभग एक सौ वर्ष पूर्व यहीं दीक्षित हुए थे । ऐसी भूमि में ऐसा स्नेहपूर्ण वातावरण उत्पन्न न हो तो अन्यत्र कहां उत्पन्न होगा ? * संघ की महिमा अनुपम है । जब तक भरत क्षेत्र में यह संघ रहेगा, चतुर्विध संघ का एक-एक सदस्य भी विद्यमान होगा, तब तक छठा आरा प्रारम्भ नहीं होगा, सूर्य मर्यादा नहीं छोड़ेगा, प्रकृति कुपित नहीं होगी । ऐसा संघ हमें मिला हैं । इसकी सफलता किसमें है ? एक घर से दूसरे घर, एक गांव से दूसरे गांव जायें वह यात्रा है । एक भव से दूसरे भव की भी यात्रा ही है । चार गतियों की यात्रा अनन्त बार की । अब यह यात्रा बन्ध कर के कहे कलापूर्णसूरि ३ कळकळ.wwwwwwwwळ २५३
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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