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पू. कनकसूरिजी
१९-८-२०००, शनिवार
__ भाद्र. कृष्णा -४
(पूज्य आचार्यश्री विजयकनकसरिजी की
३६वी स्वर्गतिथि)
पूज्य आचार्यश्री विजयकलाप्रभसूरिजी :
* गुरु के बिना भगवान नहीं मिल सकते । गुरु के बिना पद-प्रतिष्ठा आदि किसी का भी मूल्य नहीं है ।
महाराजा कुमारपाल को गुरु-भक्ति के पास राज्य तुच्छ लगता था । पूज्य कनकसूरिजी में भीम और कान्त दोनों गुण थे, जिन्हें आप 'नेगेटिव-पोजिटिव' रूप में कह सकते हैं। उनके पास कुनेहपूर्ण दृष्टि थी । समाधान करने की, उत्तर देने की उनके पास एक विशिष्ट कला थी । वे सामने वाले व्यक्ति की पूरी बात सुनते थे, परन्तु एक घंटे भर की बात का उत्तर सिर्फ एक ही वाक्य में होता, ऐसी संक्षिप्त अर्थ-गम्भीर युक्त वाणी के वे स्वामी थे, जिसे सुनकर अत्यन्त बुद्धिमान व्यक्ति भी प्रभावित हो जाते थे । जितनी संक्षिप्त बात कही जाये उतनी ही वह प्रभावशाली बनती है ।
गुरु अर्थात् गरिमा एवं गौरव का केन्द्र ! तीर्थंकर की अनुपस्थिति
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