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गुरु कैसे होते हैं ?
नय - निक्षेप प्रमाणे, जाणे जीवाजीव, स्व- पर विवेचन करतां थाये लाभ सदीव; निश्चय ने व्यवहारे विचरे जे मुनिराज, भवसायर तारण निर्भय तेह जहाज ।
ऐसे गुरु ही जहाज बनकर तार सकते हैं की यह गाथा है । पहले हिन्दुओं की गीता की स्वाध्याय होता था ।
अध्यात्मगीता । अध्यात्म गीता तरह इसका भी
जो दुर्गति में जाने न दें, वे गुरु हैं ।
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गुरु केवल नेत्र खोलने वाले ही नहीं हैं, नेत्र प्रदान करने वाले भी हैं । हमारी दो आंखें हैं, परन्तु तीसरी विवेक की, ज्ञान की आंख हमारे पास नहीं है वह गुरु प्रदान करते हैं । ऐसे गुरु की सेवा कैसे करनी चाहिये ?
सकता है ।
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रोगी डॉक्टर को समर्पित रहे तो ही आरोग्य प्राप्त कर सकता है । शिष्य गुरु को समर्पित रहे तो ही भाव-आरोग्य प्राप्त कर
भगवान उपस्थित नहीं है, परन्तु उनका पद गुरु सम्हाल रहे हैं । गुरु की शक्ति तो काम करती ही है, परन्तु शिष्य का समर्पण कैसा है उस पर सब आधार है । सिद्धों को, भगवान को या गुरु को देना नहीं पड़ता, परन्तु शिष्य अपनी योग्यता के अनुसार उसे प्राप्त कर ही लेता है ।
यहां बल्ब प्रकाश दे रहा है, परन्तु उसका प्रकाश 'पावरहाऊस' में से आता है । गुरु में ज्ञान का प्रकाश भी भगवान में से आता है । ऐसे गुरु की जिन्हों ने अमृत-वाणी का पान किया, वे अमर हो गये ।
कहे कलापूर्णसूरि ३
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जल के बिना जीवित नहीं रह सकते । गांव बसाने से पूर्व जल की सुविधा देखी जाती है । आध्यात्मिक जीवन भी जिन-वाणी के बिना नहीं चल सकता । यह जिन-वाणी श्रवण कराने वाले गुरु हैं । जिनवाणी अर्थात् ज्ञान का अमृत ।
जिन्हों ने ज्ञानामृत का पान कर लिया, क्रिया के अमृतफलों का आस्वादन किया, समता का पान खाया, उनके हृदय
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