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दीक्षा प्रतिष्ठा प्रसंग, भीमासर - कच्छ, वि.सं. २०४६
३०-३-२०००, गुरुवार चैत्र कृष्णा-१० : सचाणा
* जो विणओ तं नाणं जं नाणं सो हु वुच्चइ विणओ।
विणएण लहइ नाणं नाणेण विजाणइ विणयं ॥६२॥ * विनय ही ज्ञान है और ज्ञान ही विनय है। दोनों अभिन्न हैं । इन्हें अलग मानने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि विनय से ही ज्ञान प्राप्त होता है और ज्ञान से ही विनय जाना जाता है।
दूध और पानी हंस के द्वारा अथवा गर्म कर के अलग किये जा सकते हैं, लेकिन दूध और शक्कर को आप कैसे अलग कर सकेंगे ? विनय एवं ज्ञान का सम्बन्ध दूध और शक्कर के समान है, जिसे आप अलग नहीं कर सकते ।
* कई बार ऐसा लगता है कि सारे दिन विनय करते रहें तो अध्ययन कब करें ? यहां समाधान किया है कि विनय ज्ञान से भिन्न नहीं हैं ।
ज्ञान प्राप्त करना हो तो भी विनय नहीं छोड़े और ज्ञान प्राप्त हो गया हो तो भी विनय नहीं छोड़े। यदि विनय छोड़ोगे तो ज्ञान गया ही समझो ।
* क्या सिद्धों में विनय है ? विनय उनकी प्रकृति में (७८ 600 500
500 कहे कलापूर्णसूरि - २