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________________ भक्ति में लीनता, वि.सं. २०२६, अश्वि.व. ३०, नवसारी २६-३-२०००, बुधवार चैत्र कृष्णा - ६ : लींबडी धर्माचार्य उपदेश देते हैं, राह बताते हैं, लेकिन जीव में योग्यता ही न हो तो ? दीपक प्रकाश देता है, परन्तु देखने के लिए आंख ही न हो तो ? यह ग्रन्थ हमें योग्यता प्राप्त करने का कहता है, विनय की आंख प्राप्त करने का कहता है । प्रभु का ध्यान करने से मोक्ष अवश्य मिलता है, लेकिन ध्यान के लिए पात्रता तो होनी चाहिये न ? यह पात्रता भी विनय से ही आती है । * मिट्टी अपने आप घड़ा नहीं बन सकती और पत्थर अपने आप मूर्त्ति नहीं बन सकता, उस प्रकार जीव भगवान के बिना अपने आप भगवान नहीं बन सकता । पत्थर खान में था, उस प्रकार हम निगोद में थे । खान में से बाहर निकलने से लगाकर पत्थर पर शिल्पी के द्वारा अनेक प्रक्रियाऐं हुई तब जाकर वह प्रतिमा के रूप में हुआ । उसी तरह से हम निगोद में से बाहर आये और मानव- भव तक पहुंचे उसमें भगवान के द्वारा हुई कृपा रूपी प्रक्रिया ही कारण है । आप यह नहीं मानें कि मरुदेवी माता ने अपने आप केवलज्ञान ७६ wwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - २
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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