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________________ वर्षों पूर्व एक भाई ने अठारह रुपये प्रति तोले के भाव से सोना खरीदा था । आज यदि वह उसे बेचे तो कितने रुपये मिलेंगे ? कितना भाव गिना जायेगा ? उसी प्रकार से बाल्यकाल में कण्ठस्थ किये गये प्रकरण ग्रन्थ ( सस्ते मे मिले हुए कहलाते है न ?) बडी उम्र में लाखों-करोडों से भी अधिक मूल्यवान हो जाते हैं, क्योंकि परिपकव आयु में उनके रहस्य समझ में आते हैं । रहस्य समझ में आने पर उनका मूल्य समझ में आता है । जब आपको सुधारना हो तब मैं आपको आपके अविनय आदि दोष बतलाता हूं । जब आपका उत्साह बढ़ाना हो तब मैं आपको सिद्ध के स्वधर्मी बन्धु कहता हूं । जिस समय मुझे जो आवश्यक प्रतीत होता है वह मैं कहता हूं । पांच धर्म के लिङ्ग और पांच परमेष्ठी औदार्य - अरिहंतों में प्रकृष्ट रूप से विद्यमान है । समस्त जीवों का उद्धार करने की करुणामय उदार भावना से वे भगवान बने हैं । दाक्षिण्य सिद्धों में उत्कृष्ट रूप से है । वे जगत् के समस्त जीवों को पूर्ण स्वरूप में देख रहे हैं । कितना दाक्षिण्य है ? पाप जुगुप्सा - आचार्य भगवंतों में भारी पाप जुगुप्सा विद्यमान है । इसी कारण वे आचारों का पालन करके और उपदेश के देकर जगत् को पाप से बचाते हैं । निर्मल बोध - उपाध्याय भगवंतों में उत्कृष्ट रूप से विद्यमान होता है । वे स्वयं आगमों के ज्ञाता होते हैं तथा अन्य व्यक्तियों 1 को भी अपने समान बनाते रहते हैं । लोकप्रियता सज्जन मनुष्यों में साधु सदा प्रिय होते हैं । साधुओं को स्वाभाविक तौर पर ही लोकप्रियता प्राप्त है । कहे कलापूर्णसूरि २ OTO. ७५
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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