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पावापुरी (राज.) प्रतिष्ठा, वि.सं. २०५७
२८-३-२०००, मंगलवार चैत्र कृष्णा-८ : सियाणी तीर्थ
* जब हृदय भक्त बनता है तब प्रतिमा में तथा आगमों में भगवान दृष्टिगोचर होता हैं । जिनागम तो बोलते भगवान हैं । यदि मन में ऐसा आदर उत्पन्न हो जाये तो समझ लें कि भवसागर पार होने में अब कोई विलम्ब नहीं है ।
* शस्त्रों एवं शास्त्रों का अन्तर समझने योग्य है । शस्त्र अन्य व्यक्तियों के लिए होते हैं, स्वयं पर प्रहार करने के लिए नहीं होते ।
शास्त्र सदा अपने स्वयं के लिए ही होते हैं, अन्य व्यक्तियों के दोष देखने के लिए नहीं होते; परन्तु हम उल्टा कर रहे हैं । दर्पण में हम दूसरों का रूप देखने का प्रयत्न कर रहे हैं । आगम दर्पण है ।
"आगम आरीसो जोवतां रे लोल, दूर दीर्छ छे शिवपुर शहेर जो..."
- पं. वीरविजय * यहां (चंदाविज्झय पयन्ना में) उल्लिखित समस्त गुण पूज्य पं. भद्रंकरविजयजी में साक्षात् दृष्टिगोचर होता था। पूज्य कनकसूरिजी कहे कलापूर्णसूरि - २80RSS Womasoomwww ७३)