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खीचन प्रतिष्ठ, वि.सं. २०५८
२७-३-२०००, सोमवार चैत्र कृष्णा -७ : समला
* सभी गुण एक ओर और विनय एक ओर रहे तो भी विनय का पलड़ा भारी रहेगा । विनय अर्थात् भक्ति, विनय अर्थात् नमस्कार, विनय अर्थात् वैयावच्च और विनय अर्थात् गुणानुराग ।
आज तक हमने विषयों का, सांसारिक पदार्थों का विनय किया ही है। व्यापारी कितनों का विनय करते हैं ? वे गर्ज पडने पर गधे को भी बाप बना देते हैं। हमने सैनिक के भव में सेनापति का, सेवक के भव में राजा का, नौकर के भव में सेठ का अत्यन्त विनय किया है, परन्तु हमने कदापि लोकोत्तर विनय प्राप्त नहीं किया ।
__ कहते हैं कि लौकिक संसार में भी विनय के बिना सफलता नहीं मिलती, तो लोकोत्तर दुनिया में तो विनय के बिना सफलता मिल ही कैसे सकती है ? ___ ‘विणओ मुक्खदारं' विनय मोक्ष का द्वार है । विनय में समस्त गुणों का समावेश है ।
देव-वन्दन, गुरु-वन्दन आदि में प्रयुक्त शब्द 'वन्दन' विनय का ही वाचक है, सूचक है । 'आयारस्स मूलं विणओ' विनय केवल आचार का ही नहीं, मोक्ष का भी द्वार है । मोक्ष का द्वार (७०0000wwwwwmommon कहे कलापूर्णसूरि - २