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मद्रास प्रतिष्ठा प्रसंग, वि.सं. २०५०
२६-३-२०००, रविवार चैत्र कृष्णा -६ : सुरेन्द्रनगर
(केशुभाई पटेल, दीपचंद गार्डी, श्रेणिकभाई, धीरुभाई शाह, कल्पेश, ताराचंद छेडा, प्रकाश झवेरी, डुंगरशीभाई (अमर सन्स वाले) आदि 'हेमांजलि पौषधशाला' के उद्घाटन पर तथा संघ के दर्शनार्थ आये थे ।)
* भगवान का एक वाक्य भी हमारे जीवन को उज्जवल कर दे, यदि उसे हम जीवन में उतार दें, उसे हृदय में भावित कर दें । आप एक वाक्य को बराबर घोटे तो, उसके रहस्य आपको समझ में आयेंगे जो किसी दूसरे की समझ में नहीं आयेंगे ।
* शिष्य में दो गुण तो होने ही चाहिये - विनय एवं वैराग्य। बोने के लिए भूमि कैसी है ? किसान को उसका तुरन्त पता लग जाता है। जो विनयी हो वही आगम-श्रवण में रुचि लेता है। जहां सच्चा विनय होगा, वहां सरलता होगी और बुरा विनय होगा वहां दम्भ और कपट होगा । ऐसा शिष्य दिखावा बहुत करता है। इसलिए लिखा है कि वह आर्जव गुण से युक्त होता है।
* आज वाचना रखने जैसा अवसर नहीं था, परन्तु बीच में रूक जाये यह उचित नहीं है अतः विशेष तौर पर आज वाचना (६८ 66666600 6000 कहे कलापूर्णसूरि - २