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पदवी दीक्षा प्रसंग, आधोई - कच्छ, वि.सं. २०४६, माघ शु. ६
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२२-३-२०००
चैत्र कृष्णा - २ : कचोलीया
भगवान केवल कल्याण के कारण ही नहीं हैं, स्वयं भी कल्याण स्वरूप हैं । 'परमकल्लाणा, परमकल्लाणहेऊ' भगवान मात्र वर्णन से ही नहीं, चिन्तन एवं कल्पना से भी परे हैं ।
भगवान की शरण स्वीकार करें । 'त्वमेव शरणं मम' कहा तो भगवान ने हाथ पकड़ लिया ही समझो ।
भगवान 'नाथ' हैं । नाथ केवल औपचारिक नहीं है, परन्तु योग + क्षेम करते हुए सच्चे अर्थ में नाथ हैं । भगवान को नाथ किसने कहा है ? बीज - बुद्धि के निधान गणधर भगवंतो ने । अन्तर्मुहूर्त में द्वादशांगी के रचयिता जब ऐसे विशेषणों के साथ भगवान की स्तुति करते हैं तो उसमें अवश्य कुछ तथ्य होना चाहिये ।
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भगवान के गुण गाने से हमें क्या लाभ है ? लाभ यह है कि भगवान के जो जो गुण गायेंगे, वे वे गुण हमारे भीतर प्रविष्ट होते जाते हैं ।
'जिन उत्तम गुण गावतां गुण आवे निज अंग... '
पद्मविजयजी
१८ कहे कलापूर्णसूरि - २
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