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________________ ११ पदवी दीक्षा प्रसंग, आधोई - कच्छ, वि.सं. २०४६, माघ शु. ६ 7 २२-३-२००० चैत्र कृष्णा - २ : कचोलीया भगवान केवल कल्याण के कारण ही नहीं हैं, स्वयं भी कल्याण स्वरूप हैं । 'परमकल्लाणा, परमकल्लाणहेऊ' भगवान मात्र वर्णन से ही नहीं, चिन्तन एवं कल्पना से भी परे हैं । भगवान की शरण स्वीकार करें । 'त्वमेव शरणं मम' कहा तो भगवान ने हाथ पकड़ लिया ही समझो । भगवान 'नाथ' हैं । नाथ केवल औपचारिक नहीं है, परन्तु योग + क्षेम करते हुए सच्चे अर्थ में नाथ हैं । भगवान को नाथ किसने कहा है ? बीज - बुद्धि के निधान गणधर भगवंतो ने । अन्तर्मुहूर्त में द्वादशांगी के रचयिता जब ऐसे विशेषणों के साथ भगवान की स्तुति करते हैं तो उसमें अवश्य कुछ तथ्य होना चाहिये । ५६ ००OOOOOO भगवान के गुण गाने से हमें क्या लाभ है ? लाभ यह है कि भगवान के जो जो गुण गायेंगे, वे वे गुण हमारे भीतर प्रविष्ट होते जाते हैं । 'जिन उत्तम गुण गावतां गुण आवे निज अंग... ' पद्मविजयजी १८ कहे कलापूर्णसूरि - २ -
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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