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________________ १३. द्वादशांगी को सूत्र, अर्थ एवं तदुभय से आत्मसात् करने वाले होते है। छः आवश्यकों में प्रथम सामायिक है। समस्त द्वादशांगी का सार सामायिक है । सामायिक पर लाखों श्लोक प्रमाण साहित्य है । सामायिक का इतना महत्त्व समता के महत्त्व का सूचक है । दीक्षा के समय केवल सामायिक के पाठ का ही उच्चारण किया जाता है । सामायिक अर्थात् सावध योगों (१८ पापस्थानक) के त्याग पूर्वक निरवद्य योगों (सामायिक आदि) का सेवन । तीनों योगों में समता का नाम सामायिक है । देह को इधरउधर न हिलने दें, ज्यों त्यों वचन न बोलें, मन में दुर्विकल्प उत्पन्न न होने दें, तो तीनों योगों मे' समता आ सकती है और सामायिक स्थिर रहती है। * प्रथम विनय का वर्णन किया, क्योंकि विनय से ही शिष्य बना जा सकता है । जो शिष्य बनता है वही गुरु बन सकता है । शास्त्रकार ने कहा है कि गुरु बनने के लिए शीघ्रता न करें । शिष्य बनने का प्रयत्न करें । शिष्य बने बिना यदि गुरु बन गये तो आप स्वयं ही विपत्ति में फंस जायेंगे | शिष्य बनने के लिए सर्व प्रथम विनय आवश्यक है । * अविनय विष है। जब तक अविनय रूपी विष नहीं मिटेगा, तब तक हमारे भाव-प्राणों की पल-पल में हो रही मृत्यु रूकेगी नहीं । * तीन दिनो तक शंखेश्वर में हैं तो बराबर भक्ति करें । यह मूर्ति नहीं है, साक्षात् भगवान ही हैं यह मानें । भक्तों की प्रार्थना से मानो ये मूर्ति के रूप में यहां पधारे हैं । भगवान की भाषा समझ सको तो ये हमे बोलते प्रतीत होंगे । * 'आवो-आवो जसोदा ना कंत' - इस प्रकार आप भगवान को बुलायें । उन्हें निमंत्रण दें फिर भी भगवान कोई प्रतिभाव न बतायें यह कभी हो सकता है ? पांच हजार अट्ठम हुये थे तब मैंने यह प्रश्न पूछा था । उत्तर आपको कल बताऊंगा । |४८0amarpornmoonmomsonam कहे कलापूर्णसरि - २]
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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