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________________ ti वडी दीक्षा प्रसंग, आधोई, वि.सं. २०२९ १५-३-२०००, बुधवार फाल्गुन शुक्ला-१० : शंखेश्वर * शास्त्रों में विनय कहां है ? ऐसा नहीं, विनय कहां नहीं है, ऐसा पूछो । प्रत्येक कार्य का नवकार से प्रारम्भ होता है और नवकार परम विनय रूप है । नवकार का प्रथम पद 'नमो' विनय को ही बताता है । 'अरिहंताणं' से भी उसका स्थान प्रथम है । गुणों को आप चाहे जितने निमंत्रण पत्र लिखें, परन्तु उन्होंने मीटिंग में निश्चय किया हुआ है कि विनय हो तो ही जायेंगे । यदि विनय नहीं होगा तो एक भी गुण नहीं आयेगा । विनयरहित गुण गुणाभास कहलायेंगे । स्वयं के पास नहीं होते हुए भी अपने (पचास हजार) शिष्यों को केवलज्ञान प्रदान करने की शक्ति गौतम स्वामी में विनय से ही आई थी । भगवान महावीर के ७०० शिष्यों को ही केवलज्ञान प्राप्त हुआ था, जबकि गौतम स्वामी के सभी शिष्यों को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था । * हम तक श्रुतज्ञान पहुंचा जिसमें हमारे समस्त पूर्वजों का योगदान है। अब हमारा सम्पूर्ण उत्तरदायित्व है कि हम हमारे अनुगामियों को यह श्रुतज्ञान पहुंचायें । [४६00amoomatooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - २]
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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