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________________ आते हैं । लाख रुपयों का कार्य बताओ, तुरन्त कर लेंगे और वह भी गुप्त रूप से । २. अपरिश्रान्त - सेवा एवं स्वाध्याय करने में कदापि थकते हीं नहीं । स्वाध्याय में स्थूलिभद्र और सेवा में नंदिषेण याद आते हैं । विनय की सिद्धि कैसे प्राप्त करें ? सिद्धि वह कहलाती है जहां गुण आने के बाद जाते ही नहीं । इन सबका वर्णन इस ग्रन्थ में आगे आयेगा । उपकार क्षमा समझकर उनका सहन अपकार क्षमा मेरी लाश गिरा देगा वैसा रखने में ही मजा है पांच क्षमा माता-पिता, सेठ आदि उपकारी हैं, यह करना । यदि मैं क्रोध करूंगा तो सामने वाला बलवान है । अतः उसके सामने क्षमा यह सोचकर सहन करना । विपाक क्षमा यदि मैं क्रोध करूंगा तो मुझे ही हानि होने वाली है । समाज में 'क्रोधी' के रूप में छाप पड़ जायेगी, परलोक में दुर्गति में जाना पड़ेगा यह सोचकर सहन करना । वचन क्षमा- मेरे प्रभु की आज्ञा है कि क्षमा रखें । आज्ञा में अन्य कोई विचार होना ही नहीं । ऐसे विचारपूर्वक रखी हुई क्षमा । स्वभाव क्षमा क्षमा तो मेरा धर्म है, स्वभाव है । इसे मैं कैसे छोड़ सकता हूं ? चन्दन को कोई काटे, घिसे अथवा जलाये, फिर भी क्या वह कभी सुगन्ध फैलाना छोड़ता है ? सुगन्ध चन्दन का स्वभाव है । क्षमा मेरा स्वभाव है । ऐसी भावना से रहनेवाली सहज क्षमा । - - कहे कलापूर्णसूरि २ कwww - WTO ४५
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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