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________________ शत्रु का एक बार पता लग जाये तो फिर उसके साथ आप कदापि मित्रता नहीं कर सकते । * बुद्धिहीन 'माषतुष' मुनि को केवलज्ञान प्राप्त हो गया । महाबुद्धिमान जमालि जीवन को हार गये । क्या कारण है ? कारण यही कि 'माषतुष' के पास विनय था, जमालि के पास विनय का अभाव था । * जितेन्द्रिय की ही निर्मल कीर्ति फैलती है । लोलुप व्यक्ति कीर्त्ति पाने की आशा नहीं रख सकता । * धनहीन व्यक्ति दरिद्र, पुण्यहीन, भाग्यहीन कहलाता है । विनयहीन साधु अत्यन्त पुण्यहीन कहलाता है । * पूर्वजन्म की साधना के फल का इस जन्म में हम उपभोग कर रहे है, परन्तु अब इस भव में यदि हम साधना नहीं करेंगे तो आगामी जन्म में हमारा क्या होगा ? * हमें चारों दुर्लभ पदार्थ ( माणुस्सत्तं सुई सद्धा, संजमम्मि अ वीरिअं ।) प्राप्त हो गये हैं, ऐसा व्यवहार में कहा जा सकता है परन्तु इनका हमारे लिए मूल्य कितना ? * यदि कोई अविनयी, आचार्य के गुण छिपाये, आचार्य की अपकीर्त्ति हो ऐसा व्यवहार करे, वह ऋषिघातक के लोक (नरक) में जाता है, ऐसा यहां उल्लेख है । मिथ्यात्वके बिना ऐसा सम्भव नहीं है । मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति ७० कोटाकोटि सागरोपम की है । घोर (प्रगाढ़ ) मिथ्यात्व से ही ऐसे विचार आते हैं । * समस्त विद्याओं का मूल विनय है । यदि समस्त विद्याओं का रहस्य जानना चाहो तो विनय को अपना लें । यदि कोई व्यक्ति एक करोड़ रुपयों का चैक दे दे, तो उसने क्या दिया हुआ कहलायेगा ? इसमें मकान, दुकान आदि सब आ गया कि नहीं ? इस तरह विनय आ जाये तो सब कुछ आ गया । विनीत शिष्य के लक्षण १. सरल उदाहरणार्थ मुक्तानंदविजयजी ! पूर्ण रूपेण सरल । पूज्य देवेन्द्रसूरिजी अत्यन्त सरल थे । हमने अनेक बार अनुभव किया है | श्रावकों में गांधीधाम- निवासी देवजीभाई याद wwwww कहे कलापूर्णसूरि - २ ४४ WOOOOOO -
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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