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अग्नि संस्कार की तैयारी, शंखेश्वर, वि.सं. २०५८
१८-७-२०००, मंगलवार श्रा. कृष्णा-२ : पालीताणा
* जिनागम अमृत हैं । इनका पान करनेवाला अमर हो जाता है । इस काल में आत्म-कल्याण करना हो तो आगमों का अध्ययन करना ही पड़ेगा । आगमों के अध्ययन से विषयों का विष नहीं चढ़ता । अमृत का पान करनेवाले को विष का भय कैसा ? चंडकौशिक के विष का भगवान महावीर पर कहां प्रभाव हुआ था ? भगवान प्रेम-अमृत के सागर थे ।
आप यदि प्रेमामृत से भरे हुए हों तो इस काल में भी विषैले प्राणी आपको कुछ न करें, न कांटे । आपका चेहरा देखकर ही उनके वैर-विष का शमन हो जाता है।
* पू. मानतुंगसूरिजी म. आगम-प्रेमी थे। उनके पास बीस वर्ष पूर्व यहां हमने पाठ लिया था। महाराष्ट्र भुवन से नित्य सांडेराव भुवन में भगवती पाठ के लिए हम जाते थे ।
इस बार आपको उत्तम योग मिला है। जहां जाओ वहां अमृत ही अमृत है । पेट भरकर पीयो ।
आगमों को आप पियोगे तो वे आगम आपको एक दिन आत्मा के अमृत का प्याला पिलायेंगे । चिदानंदजी आदि की कृतियाँ (५३८000wwwwwwwwwwwooom कहे कलापूर्णसूरि - २)