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क्योंकि अपना पुन्य कमजोर है । अब पुन्य बढ़ाओ । पुन्य बढ़ने पर प्रश्न अपने आप सुलझ जायेंगे ।
पूर्व जन्म में नागकेतु को उसकी सौतेली माता संतप्त करती थी । उसके उपाय के लिए उसके मित्र ने क्या कहा ? पुन्य बढ़ा, आयंबिल कर, सब ठीक होगा ।
कमजोर पुन्य लेकर हम आकाश जितनी इच्छाएं पूर्ण करने के लिए प्रयत्नशील हैं । इच्छाएं पूरी नहीं होने पर हम निराश हो जाते हैं । हम अपने पुन्य या अपनी योग्यता की ओर नहीं देखते । अतः हम दुःखी-दुःखी हो जाते हैं । पुन्य बढ़ाने के बदले हम अन्य अन्य कुछ करने लग जाते हैं ।
पुन्य बढ़ाओ, अरिहंत की आराधना करो । अरिहंत की आराधना से पुन्य बढ़ता है । क्योंकि अरिहंत पुन्य के भण्डार हैं ।
* मैं नमस्कार करनेवाला कौन हूं? मुझ में क्या सामर्थ्य है कि मैं प्रभु को नमस्कार करूं ? इसीलिए भगवान की स्तुति करते समय गणधर कहते हैं - नमोऽस्तु । नमुत्थुणं । नमस्कार हो ।' 'नमस्कार करता हूं' ऐसा नहीं । ऐसे उपकारी प्रभु को कैसे भूलें ? ऐसे उपकारी प्रभु की भक्ति में क्या थकान आयेगी ? मुझे तो घंटो तक नहीं आयेगी, क्योंकि मेरा तो दृढ विश्वास है कि जो मिला है वह भगवान से ही मिला है । जो मिलेगा वह भी भगवान से ही मिलेगा।
भले मैं अशक्त होऊं, परन्तु मेरे भगवान बलवान हैं । उनका बल मुझे काम आयेगा । ऐसी श्रद्धा भक्त के हृदय में निरन्तर प्रवाहित रहती है ।
यदि आप ललित विस्तरा' पढ़ेंगे तो ये सभी पदार्थ व्यवस्थित रूप से समझ में आयेंगे ।
कल देववन्दन किया उसमें 'नमुत्थुणं' कितनी बार आया ? कुल ३० बार 'नमुत्थुणं' आया । (आदिनाथ आदि पांच के दो दो १० + अन्य १९ = २९ और १ शाश्वत - अशाश्वत का इस तरह = ३०)
कोई रहस्य होगा तो 'नमुत्थुणं' बार-बार आता होगा न ? यदि उसका रहस्य जानना हो तो 'ललित विस्तरा' ग्रन्थ पढ़ना ही पड़ेगा। कहे कलापूर्णसूरि - २00000000000000000 ५२९)