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________________ ये भगवान समर्थ हैं । डरें नहीं, भले कितनी ही बड़ी सेना सामने हो, परन्तु आपको डरना नहीं है। आपकी जीत ही हैं क्योंकि अनन्त शक्ति के स्वामी भगवान आपके साथ हैं । - "तप-जप-मोह महातोफाने, नाव न चाले माने रे;" । मोहराजा के आक्रमण हुए होंगे तब ही उपा. यशोविजयजी महाराज ने ऐसा गाया होगा न ? उत्तम-उत्तम साधकों के जीवन में भी मोह के आक्रमण होते हैं । उन्हें भगवान की सहायता लेकर परास्त कर सकते हैं, ऐसा वे अनुभव से बताते हैं । पं. वीरविजयजी म. कहते हैं - "मोह लडाई में तेरी सहाई..." वाचक उदयरत्नजी म. कहते हैं - "मोहराज नी फौज देखी, केम ध्रुजो रे; अभिनंदन नी ओठे रहीने, जोरे जझो रे..." उपा. यशोविजयजी म. कहते हैं - "वाचक जस कहे मोह महा अरि, जीत लियो मैदान में..." इसका अर्थ यह हुआ कि 'मोहराजा को भगवान के अतिरिक्त दबाया नहीं जा सकता । भगवान का शरण है तो मोह से डरने की आवश्यकता भी नहीं है, यह भी समझना पड़ेगा ।। * आवश्यकों पर ७५ हजार श्लोक प्रमाण पू. हरिभद्रसूरिजी की वृहद् वृत्ति थी, ऐसा सुना है । इस समय तो मध्यम वृत्ति उपलब्ध है। * जिस श्लोक का अर्थ मैं नहीं जानूं, उसे समझानेवाले व्यक्ति का मैं शिष्य बन जाऊंगा, ऐसी प्रतिज्ञा के कारण कट्टर जैन-विरोधी ब्राह्मण होते हुए भी हरिभद्र भट्ट को जैन धर्म में दीक्षित किया गया । ग्यारह गणधर, भद्रबाहु स्वामी, स्थूलभद्र स्वामी, सिद्धसेनदिवाकरसूरि, अभयदेवसूरि आदि ब्राह्मण थे । पुन्य हो तो कुल परम्परा में धर्म नहीं मिला हुआ हो तो बाद में भी मिल सकता है । इस अपेक्षा से हम कितने पुन्यशाली हैं ? जन्म लेते ही जैन धर्म मिला, फिर भी अपनी योग्यता के अनुसार ही हम ग्रहण कर सकते हैं । ५३०nmosomoooooooooooooo कहे कल
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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