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* कई बार ऐसा होता है - दीक्षा लेने के पश्चात् शिष्य पश्चाताप करता है - कैसे सोचे थे और गुरु कैसे निकले ? गुरु को भी होता है - कैसा शिष्य सोचा था और कैसा निकला ?दोनो पश्चाताप करते हैं - ऐसा होता है ?
भौंरा वृक्ष पर बैठे पोपट की चोंच को केसूडा का फूल समझकर चूसने गया । भौरे को देखकर पोपट को भी हुआ - 'यह जामुन आकर गिरा है ।" उसने उसे खाना प्रारम्भ किया ।
आप कल्पना कर सकते हैं - क्या हुआ होगा ? दोनों पेट भरकर पछताये ही नहीं, परन्तु परेशान हुए ।
यहां गुरु-शिष्य दोनों पछताते नहीं न ?
बहुत संभालकर गुरु बनें । गुरु नहीं बनोगे तो मोक्ष नहीं मिलेगा, ऐसा नहीं है। गुरु बनने की अपेक्षा शिष्य बनने का प्रयत्न करोगे तो अपने आप गुरु बन जाओगे ।
शिष्यत्व की पराकाष्ठा मतलब गुरुत्व !
सफलता के सूत्र झगड़ा हो वैसा बोलना नहीं । पेट खराब हो वैसा खाना नहीं । लोभ हो वैसा कमाना नहीं । कर्जा हो जाये वैसा खर्चना नहीं । मन खराब हो वैसा सोचना नहीं । जीवन बिगड़े वैसा आचरना नहीं । आता हो उतना बोलना नहीं । देखें उतना मांगना नहीं । सुनें उतना मानना नहीं । हंस सकें उतना हंसना नहीं ।
(५१२woooooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - २)