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प्रतिष्ठा प्रसंग
१२-७-२०००, बुधवार आषाढ़ शुक्ला-११ : पालीताणा
समस्त आचार्य भगवंतों का सामूहिक प्रवेश (तलहटी में सामूहिक चैत्यवन्दन के पश्चात्) पूज्य आचार्यश्री विजय कलापूर्णसूरिजी (चातुर्मास - खीमईबेन धर्मशाला)
'उपसर्गाः क्षयं यान्ति' । भगवान की भक्ति का यह प्रभाव है - उपसर्गो का क्षय हो जाये, विघ्नों की बेलों का विदारण हो जाये और चित्त अत्यन्त प्रसन्न हो जाये ।
प्रसन्नता एक मात्र भगवान से ही प्राप्त होती है, संसार के किसी बाजार में प्रसन्नता नहीं मिलती । प्रसन्नता एवं आनन्द के फव्वारे के समान आदीश्वर दादा यहां बैठे हैं ।
* दादा की कृपा से समस्त आचार्य भगवंतों के प्रवेश से यहां आनन्द का कैसा माहौल (वातावरण) जमा है ? भिन्नभिन्न समुदायों के आचार्य, साधु यहां एकत्रित हुए हैं, परन्तु क्या कहीं भिन्नता प्रतीत होती है ? चिन्ता न करें । पांचो महिने इसी तरह शान्ति से समस्त कार्य होंगे। (५०२ B anana
कहे कलापूर्णसूरि - २