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गच्छाधिपति पूज्य आचार्यश्री सूर्योदयसागरसूरिजी (चातुर्मास - पन्नारूपा)
उपादान एवं निमित्त - इन दो कारणों में उपादान कारण हमारी आत्मा है । पुष्ट निमित्त परमात्मा है ।
गिरिराज के समान पुष्ट निमित्त पाकर हमें आत्मा को पावन करनी है, क्षयोपशम भाव के सहारे क्षायिक भाव की ओर आगे बढ़ना है । ___ गिरिराज की छाया में आये हो तो निश्चित करें कि इस जीभ से मैं किसी की निन्दा नहीं करूंगा ।
पूज्य आचार्यश्री यशोविजयसूरिजी (चातुर्मास - वावपथक)
अहमदाबाद से हम यहां आ रहे थे तब अनेक व्यक्ति पूछते - आप सब पालीताणा क्यों जा रहे हैं ? उन सबको मैं क्या उत्तर दूं ? यहां आने का मैं क्या प्रयोजन बताऊं ? जो दादा सबको यहां बुला रहे हैं वे जानें ।
इन दादा का प्रभाव देखो । इनकी गोद में हम सब एकत्रित हुए, यही इनका प्रथम प्रभाव ।
यहां तो सर्वत्र परमात्मा ही है । अनेक रूप में परमात्मा छाये हुए है यहां -
तलहटी पर अरूप परमात्मा । मन्दिरों में रूप परमात्मा । उपाश्रयो में वेष परमात्मा । व्याख्यान आदि में शब्द परमात्मा । सबके हृदयों में श्रद्धा परमात्मा ।
परमात्मा की करुणा की यह वर्षा भक्त पर सदा बरसती ही रहती है । भक्त सूरदास के शब्दों में कहूं तो 'हे प्रभु ! आकाश से वर्षा तो कभी कभी होती है, परन्तु मेरे नेत्रों में आपकी याद से सदा वर्षा ऋतु रहो...'
__इस चातुर्मास में हमें प्रभुमय बनना है। प्रवचन केवल सुनने के नहीं हैं । प्रवचनों में बहना है । (कहे कलापूर्णसूरि - २wwwwwwwwwwwwwwwwwww ५०३)