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________________ तुम ही नजीक-नजीक सबही हैं, ऋद्धि अनंत अपारा ।" भगवान जब समीप होते है तब अपना आंतर कुटुंब समीप होता है। भगवान दूर तो सब दूर । भगवान निकट तो सब निकट । ___अन्त समय में माता, पिता, भाई, बंधु, मित्र, पुत्र अथवा पत्नी कोई काम नहीं आते । केवल अंतरंग-परिवार, मात्र भगवान का प्रेम ही काम आयेगा । भगवान महावीर का निर्वाण हुआ तब गौतम स्वामी रोये । आदिनाथ गये तब भरत रोये । ये आंसू उन्हें केवलज्ञान के मार्ग पर ले गये । इन आंसुओं की प्रत्येक बूंद में प्रभु के प्रेम का सिन्धु छलकता था । दूसरों का प्रेम मारता है ! प्रभु का प्रेम तारता है !! * संयम में आवश्यकता हो वह उपकरण है । उससे अधिक वह अधिकरण है। यदि यह सूत्र याद रखोगे तो अधिक संग्रह करने की इच्छा कदापि नहीं होगी । हमारे गुरुजी (पू. कंचनविजयजी म.) एकदम फक्कड़ थे । अत्यन्त निःस्पृही थे । उनके स्वर्गवास के पश्चात् उनकी उपधि में केवल दो ही वस्तु रही थी - संथारा एवं उत्तरपट्टा । उनके कारण हम में भी कुछ अंशो में ऐसी वृत्ति आ गई । हम पांच (पू. कमलविजयजी म., पू. कलापूर्णसूरिजी म., पू. कलहंसविजयजी म., पू. कलाप्रभविजयजी म. तथा पू. कल्पतरुविजयजी म.) विहार करते तब कोई श्रमिक या सेवक साथ नहीं रखते थे । वैसे ही निकल पड़ते थे। एक बार श्रमिक देरी से आने के कारण पोटले की वस्तुएं स्वयं उठा ली और तब से श्रमिक को सदा के लिए बिदाई दे दी । चाहे जितना संग्रह करो । मृत्यु के समय कुछ भी साथ नहीं आयेगा । यह तो हम जानते ही हैं न ? या गृहस्थों को कहने के लिए ही जानते हैं ? (४९४ womasoomwwwwwwws कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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