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छरी पालक संघ, वि.सं. २०५६
११-३-२०००, शनिवार फाल्गुन शुक्ला-६ : वाराही
* भगवान योग-क्षेमंकर नाथ हैं । वे जगत् के ही नहीं हमारे भी नाथ हैं, क्योंकि हम जगत् से बाहर नहीं है । गुणों की आवश्यकता हो, प्राप्त गुणों के सुरक्षा की चिन्ता हो तो भगवान को पकड़ लीजिये, क्योंकि अप्राप्त गुणों की प्राप्ति एवं प्राप्त गुणों की सुरक्षा जगन्नाथ भगवान ही कर सकते हैं ।
मोक्ष में गये हुए भगवान हमारे 'वोचमेन्' कैसे बनें ? उनकी अनुपस्थिति में भी उनका 'वोचमेन' के रूप में कार्य चालु ही रहता है - नाम स्थापना आदि के द्वारा, धर्म के द्वारा, गुरु के द्वारा । ये सभी भगवान के ही स्वरुप हैं ।
विनय का महत्त्व भगवान इसीलिए समझाते हैं । विनय से ही अप्राप्त गुण आते हैं, गुण आये हुए हों तो टिके रहते हैं । विनय की वृद्धि के लिए ही सात बार चैत्यवन्दन करने का विधान है । कदम-कदम पर विनय संयम-जीवन में गुंथा हुआ है, व्याप्त है।
__ शास्त्रकारों का निर्देश है कि कोई भी कार्य गुरु को पूछकर ही करें ।
जो आज्ञा नहीं मानता हो उस सैनिक को क्या सेनापति रखेगा ? (कहे कलापूर्णसूरि - २wasansoooooooooooom ३१)