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________________ * चंद्राविज्झय पयन्ना में आने वाले सात द्वार : १. विनय । २. आचार्य-गुण । ३. शिष्य-गुण । ४. विनय-निग्रह । ५. ज्ञान के गुण । ६. चारित्र । ७. समाधि-मरण । विनय का अभाव हो तो समुदाय संभाला ही नहीं जा सकता । विनय - अनुशासन आदि विशेषावश्यक हैं । * साध्वीजियों को संघ हेतु कुछ निर्देश : १. ग्यारह बजने से पूर्व काप का पानी न लायें । २. रसोईघर में रसोइये को कोई निर्देश न दें । ३. अंधेरे में भटकना नहीं । ४. प्रातः ५.३० से पूर्व विहार न करें । मैं जब चलता था (डोली नहीं आई थी तब तक) तब सूर्योदय के समय ही विहार होता था । सुरक्षा के लिए भी ऐसा करना अनिवार्य है । ऐसी घटनाएं अनेक हो चुकी है कि जो प्रातः शीघ्र निकले वे शीघ्र ही उपर पहुंच गये । त्रिकालातीत बन कर प्रभु की भक्ति करें तीनों काल से मुक्त होकर भगवान का स्मरण करें । भूतकाल को याद करोगे तो शोक आदि में डूब जाओगे। वर्तमान को याद करोगे तो मोह-माया में उलझ जाओगे । भविष्यकाल को याद करोगे तो चिन्ता के कीचड में फंस जाओगे। [३० 0nooooooooooooooooon कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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