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मनफरा प्रतिष्ठ, वि.सं. २०२३, वै.सु. १०
३-७-२०००, सोमवार आषाढ़ शुक्ला-२ : पालीताणा
(आज प्रातः गिरिराज पर पूज्यश्री की निश्रा में दादा के दरबार में अभिषेक कराये गये । शशीकान्तभाई ने मेघराजा को प्रार्थना की । श्रेणिकभाई भी वहां आये थे । मध्यान्ह में मेघराजा रीझे भी सही । कल भी रीझे थे ।)
* भगवान की आज्ञा का पालन करने से उनकी अचिन्त्य शक्ति का अनुभव होता है। उदाहरणार्थ-गणधर भगवन्त । उन्होंने जहां बिना शर्त के समर्पण किया, वहीं सम्यग्दर्शन आदि पाकर सर्वविरति तो प्राप्त की ही । त्रिपदी के श्रवण मात्र से अन्तर्मुहूर्त में द्वादशांगी की भी रचना की ।
तीर्थंकर नाम-कर्म की तरह गणधर नाम-कर्म का भी उदय होता है । उनका यह उदय उस समय हुआ था ।
भगवान के पश्चात् देवर्द्धि गणि क्षमाश्रमण तक, एक हजार वर्षों तक आगमों का पाठ मुखपाठ से चलता रहा । उसके बाद आगम पुस्तकों में आये । पुस्तकों की आवश्यकता बढती हुई बुद्धिहीनता की सूचक थी ।
* आदिनाथ महाकाव्य के रचयिता कवि धनपाल को राजा (४५२ 60
0 000 कहे कलापूर्णसूरि - २)